मनुष्य जन्म से ही डरपोक है। जब वह दुनिया को नहीं समझता , कुछ भी नहीं बोल पाता तब भी वह डरता है. कुछ और बड़ा हो जाने पर माँ-बाप की डांट या फिर मार का भय , फिर स्कूल में अध्यापक का भय ,सहपाठियों द्वारा हास्य का पात्र बनने के भय , कक्षा में फ़ेल हो जाने का भय ,दंड का भय आदि . आयु बढने के साथ विभिन्न प्रकार के भय मनुष्य को घेर लेते है.जैसे मृत्यु का भय , संपत्ति खो जाने का भय , ज़मीन -जायदाद के छिन्न जाने का भय, अपने प्रिय से दूर हो जाने का भय , समाज में सम्मान खो जाने का भय आदि .इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार की चीजों या जीवों से भय लगभग सभी मनुष्यों की प्रविर्ती में आता है. किसी को शेर से भय लगता है तो किसी को अंधेरे से ; कोई साँप से भय खाता है तो कोई अकेलेपन से। अंतत यहाँ यह कहना अनुचित नही होगा कि मनुष्य का पूरा जीवन किसी न किसी भय से हर समय पीड़ित रहता है.
वे व्यक्ति जोकि यह धारणा रखते है या यह दावा करते है कि उन्हें किसी प्रकार का कोई भय नही है, निराधार है क्योंकि यदि वे किसी भौतिक चीज़ से नही डरते तो भी वे मानसिक तौर पर किसी न किसी विचार से भयभीत होंगे। यदि एक सैनिक की बात करें जिसे पूरे ट्रेनिंग के दौरान निर्भय होने का पाठ पढाया जाता है किसी न किसी प्रकार के भय से ग्रस्त हो सकता है.एक आंतकवादी जोकि, आत्मदाह करके कई निर्दोष व्यक्तियों की जान लेने को तत्पर हो, क्या उसके मन में किसी प्रकार का भय नही होगा.
यहाँ यह मान लेना अत्यंत आवश्यक है कि सभी मनुष्य तथा अन्य जीव अपना जीवन ज्ञात अथवा अज्ञात भय में व्यतीत करते है। और हो भी क्यों न. भय हमारे जीवन की अन्य संवेदनाऐं जैसे कि भूख,हसना, रोना प्यास आदि की भांति ही है. परन्तु भय एक सीमा के भीतर ही रहे तो अच्छा है. यदि यह सीमा लाँघ जाए तो न केवल हमारी देह बल्कि हमारा पूरा वक्तित्व ही प्रभवित कर सकता है. हर डर की एक सीमा तय की जानी चाहिए और यह सीमा हमें ख़ुद ही तय करनी होगी.
किसी भी प्रकार का भय , यदि हमारी प्रगति के रास्ते में आता है तो उसका सामना करके उसे दूर भागने या फिर उसे मार डालने में ही भलाई है। यदि कोई छिपकली से डरता है और यह डर उसके दिलोदिमाग पर हावी है तो अच्छा होगा की वह व्यक्ति अपने आप से पूछे कि ऐसा क्या है छिपकली में जिससे कि वह भयभीत हो रहा है. छिपकली उसे क्या नुक्सान पहुँचा रही है? अक्सर ऐसा होता है कि हमें किसी चीज़ से भय होता है जोकि हमे लिए हानिप्रद नहीं होती. वह डर केवल हमरे मस्तिशिक में है.
यदि वह हानिप्रद है भी तो भी हमें उसका सामना करना चाहिए।
इस प्रकार डर की आँखों में ऑंखें ढाल कर देखें कि स्वयं भय भी भयभीत हो जाए . डर से दूर भागने से डर से निपटा नही जा सकता. इसके लिए कमर कस कर डर का साक्षात्कार करना ही उचित है. यही एकमात्र तरीका है जिससे डर से छुटकारा पाया जा सकता है अन्यथा हम जीवनभर भय से भागते रहेंगे.
हाँ यह चर्चा करना भी महत्वपूर्ण है कि भय लाभप्रद भी है यह मनुष्य को दुष्कर्मो की और जाने से रोकता है , प्रकर्ति के नियमों का उलंघन करने से रोकता है तथा समाज के नियमों में बंधकर जीवन वहन करने कि प्रेरणा देता है. यह भय ही तो है जोकि अधर्म की राह पर जाने से रोकता है. अंत भय लाभप्रद भी है .यह हमें ही निर्णय करना है कि वह हमारे जीवन को सकारात्मक दिशा में ले जा रहा है या नकारात्मक दिशा में- यह हमें ही तय करना है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Brain Based Learning
Neuroplasticity is ability of our brain to change and restructure itself which enables us to learn and adapt. This enables our brain to make...
-
Neuroplasticity is ability of our brain to change and restructure itself which enables us to learn and adapt. This enables our brain to make...
-
Here is a new way to play it....chek this video:
-
According to swami Vivekanand “Education is the manifestation of the perfection already in man.” Education is a powerful mean of self-expres...
No comments:
Post a Comment