Jul 31, 2008

परमात्मा क्या है


परमात्मा जिसका अभिप्राय है "परम आत्मा" , वह आत्मा जिसका कोई रूप, कोई रंग, कोई आकृति नहीं है , पर हाँ अस्तितिव है. उसका अस्तितिव हमारे अस्तित्व से कहीं ऊपर है या कुछ यूँ कहें कि उसके अस्तितिव के कारण ही हमारा , इस सृष्टि के हर जीव का अस्तिव है. यदि हम इस संसार के भ्रमण पर निकलें तो पाएंगे कि जगह - जगह , देश -देश, राज्य-राज्य , शहर-शहर परमात्मा का पूजनीय रूप भिन्न-भिन्न है. परमात्मा के नाम, पूजा करने के तरीका , सभी कुछ भिन्न है।

भगवान राम की जिस रूप भारत में पूजा की जाती है वह थाईलैंड , मलयेशिया , म्यांमार , कम्बोडिया और विएतनाम के लोगों के राम उससे थोड़े भिन्न है। इसीप्रकार भगवान कृष्ण की विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है. यदि विचार किया जाए तो पाएंगे कि परमात्मा के जिस रूप की पूजा कि जाती है , वह वहां के रहने वाले लोगों की वेशभूषा .चाल ढाल , सजने सवरने के तरीके के अनुरूप ही होता है.

मनुष्य की आदत है कि वह परमात्मा को अपने जैसा ही देखना चाहता है। वह परमात्मा का वही रूप देखता है जोकि उसके तथा समाज, जिसमे वह रह रहा है ,उसी की भांति हो। अब चूँकि वह परमात्मा है तो उसे एक सुंदर सूरत तथा आकर्षक वेशभूषा पहने हुए ही प्रस्तुत किया जाता है. मन्दिर जाकर देखें तो पाएंगे कि भगवन राम को , माता सीता को , श्री कृष्ण को तथा अन्य मूर्तियों की सभी प्रकार के जवाहरात व आकर्षक कपडों से लदा हुआ देख जा सकता है. परन्तु क्या यह विचार हमारे मन में कभी नहीं आता कि यदि परमात्मा साक्षात मन्दिर में दर्शन दे दें तो क्या वे अपने अमूल्य जवाहरात गरीबों तथा भूखों को नहो दे देंगे. क्या वे इन बेशकीमती चीजों का त्याग नहीं कर देंगे. परमात्मा का यह भव्य तथा अति सुंदर रूप समाज के अमीर व सम्पतिवान ठेकेदारों ने दिया है. परमात्मा का यह रूप उसे गरोबों से दूर कर देता है और इसी कारण गरीब आदमी परमात्मा को ख़ुद से दूर व अपनी पहुँच से ऊपर देखता है।

परन्तु यह स्मरण रहे कि परमात्मा का कोई एक रूप नहीं है, न ही कोई रंग है और न ही वेशभूषा है. वह तो निरंकार है, निर्विकार है . परमात्मा एक शक्ति है , एक उर्जा है और एक एहसास है. वह कहीं बाहर नहीं है, किसी मन्दिर, चर्च या मस्जिद में नहीं मिलेगा. अपने अंदर ही यदि खोजें तो आसानी से मिल जाएगा.

यह राग सुन कर आप परमात्मा को अपने आस पास ही पाएंगे :


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